
Navratri Puja Vidhi 2023 | नवरात्री पूजा विधि, कलश स्थापना मुहूर्त, पूजा मंत्र, आरती
Navratri Puja Vidhi: चैत्र नवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो हर साल चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में नौ दिनों तक मनाया जाता है। यह देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है। त्योहार की शुरुआत कलश स्थापना या घटस्थापना से होती है, जो घर या मंदिरों में कलश की स्थापना है।
कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कलश देवी दुर्गा का प्रतिनिधित्व करता है और पवित्र जल से भर जाता है और पत्तियों, फूलों और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजाया जाता है। कलश को चावल की क्यारी पर रखा जाता है और उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। यह भगवान गणेश की उपस्थिति का प्रतीक है।
चैत्र नवरात्रि 2023 तिथि और मुहूर्त
2023 में चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च को रात 10:52 मिनट से होगी और अगले दिन मतलब 22 मार्च 2023 को रात 8:20 मिनट पर स्थिति का समापन होगा नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च 2023 से उदया तिथि के अनुसार होगी
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
22 मार्च 2023: प्रातः 06: 23 मिनट से 07: 32 मिनट तक
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कलश स्थापना की विधि कुछ इस प्रकार है
- कलश स्थापना के लिए सुबह स्नान करके ही मंदिर में प्रवेश करें!
- फिर मंदिर की अच्छे से सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें
- एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर लाल कपड़ा बिछा दे और उसके ऊपर थोड़े से चावल रखें
- अब एक मिट्टी के बर्तन में जौ को बो दे और इसके ऊपर जल से भरे कलश की स्थापना करें
- अब कलश के मुख पर अशोक के पत्ते लगाएं और क्लास के ऊपर एक स्वास्तिक बनाए
- फिर इसमें एक साबुत सुपारी, सिक्का, अक्षत डालें और कलावा बांधे।
- इसके बाद एक नारियल लेकर उसे लाल कपड़े में लपेटे और उसे कलश के ऊपर स्थापित करके देवी दुर्गा का आवाहन करें
- कलश स्थापना मंत्र का जाप करें, जो इस प्रकार है:
“ॐ देवी शैलपुत्री महादेवी नमः, घटस्थापना करिष्यामी”
- फिर कलश के पास दीपक जलाएं और देवी को फूल मिठाई और फल चढ़ाएं
फिर नवरात्रि के दौरान हर दिन कलश की पूजा की जाती है और नौवें दिन इसे पास की नदी या झील में ले जाया जाता है और पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना करने से घर में सकारात्मकता, समृद्धि और खुशियां आती हैं।
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कलश स्थापना के लिए मंत्र
कलश स्थापना के स्थान को दाएं हाथ से स्पर्श करके यह मंत्र बोले
ओम भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रीं। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृग्वंग ह पृथिवीं मा हि ग्वंग सीः।।
कलश के नीचे सप्तधान बिछाने का मंत्र
ओम धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्यो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि।।
कलश स्थापित करने का मंत्र
अब जहां कलश रखना हो वहां यह मंत्र बोलते हुए कलश को स्थापित करें
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः।।
कलश में जल भरने का मंत्र
ओम वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्काभसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद।। इस मंत्र को बोलते हुए कलश में पूरा जल भर दें।
कलश में चंदन डालें
ओम त्वां गन्धर्वा अखनस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।। इस मंत्र से कलश में चंदन लगाएं।
कलश में सर्वौषधि डालने का मंत्र
ओम या ओषधी: पूर्वाजातादेवेभ्यस्त्रियुगंपुरा। मनै नु बभ्रूणामह ग्वंग शतं धामानि सप्त च।।
कलश पर पल्लव रखने का मंत्र
ओम अश्वस्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता।। गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्।।
कलश में सप्तमृत्तिका रखने का मंत्र
ओम स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः।
कलश में सुपारी रखने का मंत्र
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ग्वंग हसः।।
कलश सिक्का रखने का मंत्र
ओम हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
कलश पर इस मंत्र से वस्त्र लपेटें
ओम सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः । वासो अग्ने विश्वरूप ग्वंग सं व्ययस्व विभावसो।।
कलश पर चावल से भरा बर्तन रखने का मंत्र
ओम पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा पुनरा पत। वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ग्वंग शतक्रतो।। इस मंत्र को बोलते हुए कलश के ऊपर के एक मिट्टी के बर्तन में चावल भरकर रखें।
कलश पर नारियल रखने का मंत्र
ओम याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हसः।। इस मंत्र को बोलते हुए लाल वस्त्र में नारियल लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित करें।
अब इन मंत्रों से कलश की पूजा करें।
कलश में वरुण देवता का आह्वान और ध्यान करें।
ओम तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ग्वंग स मा न आयुः प्र मोषीः। अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि। ओम भूर्भुवः स्वः भो वरुण, इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण। ‘ओम अपां पतये वरुणाय नमः’
इन मंत्रों को बोलते हुए कलश पर अक्षत फूल चंदन लगाएं।
अब कलश की पंचोपचार सहित पूजा करें। अब कलश में पंचदेवता, दशदिक्पाल चारों वेदों को कलश में विराजने प्रार्थना करें कलश में विराजित देवताओं से प्रार्थना करें कि वह आपकी पूजा को सफल बनाएं और घर में सुख शांति बनी रहे। फिर भगवान गणेश की पूजा करें और क्रमवार से देवी एवं उनके गणों और शिवजी की पूजा करें।
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नवरात्रि आरती | Navratri Puja Arti
यह त्योहार देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है। नवरात्रि पूजा आरती नवरात्रि समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देवी के प्रति समर्पण और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किया जाता है। –
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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